आंचल में वात्सल्य की नदियां हैं और होंठों पर अमृत का प्याला भी रखती हूं, आंचल में वात्सल्य की नदियां हैं और होंठों पर अमृत का प्याला भी रखती हूं,
आती जब बहू बनकर मकान को घर बनाती है। अपना घर छोड़कर पराये घर को भी अपनाती है। आती जब बहू बनकर मकान को घर बनाती है। अपना घर छोड़कर पराये घर को भी अपनाती है।
नारी त्याग की मूरत है, करै रात-दिन काम। नारी न होती जगत में, होता काम तमाम। नारी त्याग की मूरत है, करै रात-दिन काम। नारी न होती जगत में, होता काम त...
पापा की परी...बेटियाँ पापा की परी...बेटियाँ
कभी हम यह क्यों नहीं सोचते कि हमने देश के लिए क्या किया... कभी हम यह क्यों नहीं सोचते कि हमने देश के लिए क्या किया...
क्या छोड़ जायेंगे हम अपनी विरासत में। क्या छोड़ जायेंगे हम अपनी विरासत में।